1921में बिहार विद्यापीठ की स्थापना गाँधी जी के द्वारा हुई थी। देशरत्न डा॰ राजेन्द्र प्रसाद 1921 वर्ष से 1946 वर्ष तक बिहार विद्यापीठ परिसर में एक खपड़ैल मकान में रहा करते थे जिसे आज “राजेन्द्र स्मृति भवन” कहते है। 1946 में वे भारत के अंतरिम सरकार में खाद्य एवं कृषि मंत्री के पद को सुषोभित करने चले गये।
दिल्ली में जब उनके राष्ट्रपति पद से अवकाष प्राप्त करने का समय नजदीक आया तब उन्होंने यह इच्छा व्यक्त की कि अवकाष प्राप्त करने के पश्चात् वह बिहार विद्यापीठ में ही रहना पसंद करेंगे। अतएव 3 जनवरी 1962 को यह निर्णय लिया गया कि वर्तमान भवन जिसको उन दिनों अतिथिषाला कहा जाता था, का निर्माण कुल मिलाकर 1 (एक) लाख रूपये में किया जाय।
जब राजेन्द्र बाबू 14 मई 1962 को पटना आये तो पहले अपने उसी खपड़ैल मकान में ठहरे जहाँ आजादी से पहले वह रहा करते थे। अतिथिषाला तैयार होने के पश्चात् राजेन्द्र बाबू नवम्बर 1962 में इस नये भवन में प्रवेष किये। उनका देहावसान दिनांक 28.02.1963 को रात्री बेला में 10 बजकर 13 मिनट पर हुआ। दिनांक 12.05.1963 को आचार्य श्री बदरीनाथ वर्मा की अध्यक्षता में हुई बैठक जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री पंडित विनोदनन्द झा, लोकनायक जयप्रकाष नारायण, कृष्ण नन्दन सहाय इत्यादि उपस्थित थे, यह निर्णय लिया गया कि इस भवन का नाम ”राजेन्द्र स्मृति संग्रहालय” रखा जाय। पंडित विनोदानन्द झा को अध्यक्ष, श्री कृष्णनन्दन सहाय को मंत्री एवं आचार्य श्री बदरीनाथ वर्मा को कोषाध्यक्ष बनाया गया।
इस संग्रहालय में भारत के प्रथम राष्ट्रपति देषरत्न डा॰ राजेन्द्र प्रसाद के जीवन से संबंधित विभिन्न बहुमूल्य दुर्लभ, आकर्षक एवं अद्वितीय प्रादषों को राष्ट्रीय धरोहर के रूप में संजोकर जनमानस के अवलोकन हेतु रखा गया है।
हमारा प्रयास है कि इस पुनीत एवं पाचन स्थल को एक उपयोगी, भव्य, आकर्षक एवं मनोरम “राष्ट्रीय धरोहर” के रूप में विकसित करें जो आगन्तुकों/दर्षकों हेतु आदर्ष एवं स्थायी प्रेरणाश्रोत का रूप धारण करे।